Apna sa ek ajnabi in Hindi Horror Stories by Shubham Singh books and stories PDF | अपना सा एक अजनबी

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अपना सा एक अजनबी

मैं यानि पवन पेसे से एक अकाउंटेंट, ऑफिस से निकल कर मैं पास के ही बस स्टॉप पे बस का इंतजार कर रहा था। ये वो दौर था जब देश अभी उतना डिजिटल नहीं हुआ था, और भगवन की कृपा से अभी फ़ोन नहीं लोग स्मार्ट हुआ करते थे। कुछ ही लोगो के पास कलर फ़ोन थे। आज महीने की पहली तारीख थी और पहली तारीख यानि तनख्वा का दिन। कॉलेज ख़त्म करके अभी मुझे कुछ ही महीने हुए थे नौकरी करते हुए, तो इस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता था। तभी जोरो की बारिश शुरू हो गई , और बस को आने में और देरी होने लगी। मैं बस का इंतजार कर ही रहा था की तभी,"हेलो सर " एक २२ २३ साल के लड़के ने बोला वो मेरे पास में ही खड़ा था । "हेलो पहचाना नहीं मैंने आपको " मैंने उसकी शकल को ध्यान से देखते हुए उसे पहचानने की कोशिश करते हुए कहा। "जी आप मुझे नहीं जानते ,पर मुझे आपकी एक मदद चाहिए। " हाँ बताइये। " "दरअसल मैं यहाँ पे किसी का इंतजार कर रहा था पर लगता है बारिश की वजह से वो आ नहीं पाएंगे। " इसमें बारिश की तरफ इशारा करते हुए कहा। "अच्छा पर इसमें मैं आपकी क्या मदद कर सकता हू?" मैंने थोड़ा हैरान होते हुए उससे पूछा "मुझे कुछ पैसे की बहुत शक्त जरुरत है और जिनका मैं इंतजार कर रहा वो वही पैसे ले कर आने वाले थे। तो क्या आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं ? मैं कल के कल आपके पैसे आपको लौटा दूंगा " मैंने उसको ऊपर से नीचे तक देखा, देखने से तो अच्छे घर का लग रहा था पर फिर भी ऐसे किसी अनजान की मदद करने को मेरा मन नहीं माना। पर फिर उसके मासूम चेहरे पे मेरी नजर पड़ी तो मुझे लगा इसकी मदद कर देनी चाहिए। "कितने पैसे चाहिए तुम्हे ?" "दो हज़ार " " दो हज़ार ?" मैंने जोर देते हुए कहा , दो हज़ार तो आज भी आम आदमी के लिए बहुत है और उस वक़्त जब मेरी तनख्वा ही १०००० थी तब तो २००० और मायने रखते थे। "क्या मैं जान सकता हु तुम्हे इतने पैसे क्यों चाहिए ?" "मैं यहाँ पढाई करता हु हॉस्टल मेर रह कर और मेरे पापा ने मेरे चाचा के हाथो पैसे भेजवाये थे फीस जमा करने के लिए। मेरे चाचा इसी शहर में हैं पैसे तो मैं खुद उनसे कल ले लूंगा पर मुझे कल सुबह ही फीस जमा करनी है तो बस इसलिए " मुझे उसकी बातो में सच्चाई लगी पर फिर भी मैं थोड़ा हिचक रहा था की क्या करू। "अगर आपको अभी भी मुझपे भरोसा नहीं हो रहा तो आप मेरा ये फ़ोन रख लीजिये अपने पास। मेरे पापा ने पिछले महीने ही मझे दिया था पुरे ३५०० का है।मै कल आपको पैसे लौटा के फ़ोन ले लूंगा " रकम बड़ी नहीं होती तो शायद मैं उससे कह देता नहीं इसकी जरुरत नहीं है, पर उस वक़्त २००० बहुत थे। "ठीक है पर कल सच में लौटा दोगे ना तुम ?" " हाँ आप बेफिक्र रहिये आप ये फ़ोन रखिये और मैं कल आपको इसी फ़ोन पे कॉल कर के आपसे मिले के दे दूंगा पैसे" उसने मुझे अपना फ़ोन दिया ,फ़ोन सच में मेहेंगा था ,कलर फ़ोन था वो स्क्रीन भी काफी बड़ी थी. मैंने फ़ोन लिया और तनख्वा के १०००० में से निकाल के २००० उसको दिया। वो पैसे गिनने लगा और मैं उसका फ़ोन उलट पलट के देखने लगा। मैं देख के जैसे उसके तरफ पलटा वो वहां नहीं था। मैंने इधर उधर नजर दौड़ाई पर वो दूर दूर तक कही नहीं दिखा। मुझे लगा शायद उसे जल्दी रही होगी इसलिए चला गया होगा। मैंने इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं क्युकी पैसे से ज्यादा महंगा फ़ोन तो मेरे पास था अगर वो पैसे नहीं लौटाएगा तो उसका ही नुकसान है मैं तो आराम से इसको बेच के अपने पैसे ले लूंगा। बारिश भी रुक गई थी तब तक , और बस भी आ गई मैं फ़ोन को पॉकेट में रख के बस पे चढ़ गया।

मैं यहाँ अकेले रहता था घर पहुंच कर मैंने अपना और उसका फ़ोन अलमारी में रखा और नहाने चला गया। मैं नाहा कर आया और तभी टिफिन वाले भैया टिफिन ले कर आ गए। मैंने टिफिन लिया और खाने बैठ गया। खाने के बाद मैंने मम्मी को फ़ोन मिलाने के लिए फ़ोन उठाया तो गलती से उसका फ़ोन हाथ में आ गया। मैं जैसे ही उसका फ़ोन रख के अपना फ़ोन उठाने जा रहा था तो ,मैंने देखा उसपे किसी का मैसेज आया हुआ है। पर मैंने फ़ोन रख दिया और अपने फ़ोन से घर बात करने लगा। बात करने के बाद मैं वापस जब आया तो मैंने फिर उसका फ़ोन उठाया की देखु कहीं उसी ने किसी और के नंबर से मैसेज नहीं ना किया है। मैसेज करने वाली का नाम संजना था। संजना बड़ा अच्छा नाम है, मैंने मन में सोचा क्युकी ऐसे नाम हमने अक्सर फिल्मो में ही सुने थे वरना हमारे यहाँ तो लड़कियों के नाम पूनम आरती पूजा यही सब होते हैं। खैर मैंने मैसेज खोला और मैसेज पढ़ने लगा, काफी बड़ा मैसेज था। ..

"दीपक तुम मेरे मैसेज का रिप्लाई क्यों नहीं कर रहे, मैंने तुम्हे कितने मैसेज किया पर तुम्हारा एक का भी जवाब नहीं आया। आखिर मुझे बताओ तो की मुझसे क्या गलती हो गई की तुम मेरे मैसेज का कोई जवाब नहीं दे रहे। जब से तुम्हारा मैसेज नहीं आ रहा मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगा रहा। बस हर वक़्त फ़ोन चेक करती रहती हु की क्या पता तुमने कोई मैसेज किया हो। मुझे तो ये भी नहीं पता मेरे मैसेज तुम्हे मिल भी रहे या नहीं मन तो कर रहा तुम्हे एक बार फ़ोन कर लू पर तुम तो जानते ही हो घर पे बात नहीं कर सकती। प्लीज दीपक एक बार रिप्लाई कर दो.मिस यू यार एंड ऍम सॉरी अगर मुझसे अनजाने में कोई भी गलती हुई हो तो. "